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महादेव कहलन्हि नारद सँ [ Singer : Rajni Pallavi ]
कवि/गीतकार : श्री उमाकान्त झा 'वक्शी'
Nachari indicates songs representing direct prayer to Siva. Mostly it refers to the ecstatic dance of Siva.
महादेव कतेको बेर घर छोड़ि कय भागला । आखिर हुंनकर एहेन कोन समस्या अछि जे ओ भांग पीने रहैत छथि आ तांण्डव नृत्य करैत छथि । महादेवक परिबारक रचना देखू । केहेन विपरीत स्थिति मे बाबा अपन परिबार के संग रहैत छथि। सुनू एहि नचारी मे।
महादेव कहलन्हि नारद सँ, विपति पड़ल बड़ भारी।
गौरी गोर गौरवे ऑन्हरि, हम जमुनियॉ कारी।
नारद विपति पड़ल…
हमर सवारी वसहा, गौरी राखल अप्पन शेर।
एक झपट्टा मारत, हम्मर वसहा हेतै ढ़ेर।
करैछी चौकीदारी।
नारद विपति पड़ल…
हम पहिरने विषधर माला, कार्तिक पोसल मयूर।
रखबारी मे जीवन बीतल, भेलहुं झुरकुट बूढ़।
केहेन हम्मर लाचारी।
नारद विपति पड़ल…
अप्पन दु:ख के विसरय खातिर, हम पिबै छी भांग।
हीरा, मोती, सोना, चांदी, पार्वती के मांग।
भेलहुं हम भिखारी।
नारद विपति पड़ल…
गृह कलह सँ ऊबि गेलहुं, नहि भेटल किओ और
विद्यापति के भांग पिसै छी, मिथाला देलक ठौर।
कहुंना समय गुजारी।
नारद विपति पड़ल…
भांग पीसीते देखि सुधीरा, सबदिन भेली आगि।
कनेक काज मे देरी भेलै, क्रोध एहेन गेल जागि
नुकएलहुँ बाड़ी झारी।
नारद विपति पड़ल…
आब कतय हम जायब कहू, नहि कतउ पुछारी।
एहेन विवाहक कोन प्रयोजन , भले रही ब्रह्मचारी।
बक्शी गाबय नचारी।
नारद विपति पड़ल…
Author: Rajni Pallavi
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